महान शिवभक्त दशानन उर्फ लंकापती रावण..ह्यांनी हे स्तोत्र रचलेले आहे. पंडीत रामदास कामतांच्या खड्या आवाजात, आकाशवाणीच्या मुंबई केंद्रावरून मी हे असंख्य वेळा ऐकलेलं आहे. पण मंडळी जालावर हे स्तोत्र कुठेच ऐकता येत नाही असे कळले...तेव्हा त्याचा शोध घेतांना हे मला कुलटोडवर सापडले....आता इतरांना ते सहज ऐकता यावे म्हणून मी ते डिवशेयरवर चढवून इथे देत आहे.
जटा कटाहसंभ्रमभ्रम न्निलिंपनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम
धराधरेंद्रनंदिनी विलास बंधुबंधुर-
स्फुरद्दिगंत संतति प्रमोद मानमानसे
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि
जटा भुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्वधूमुखे
मदांध सिंधुरस्फुरत्व गुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि
सहस्रलोचनप्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोरबंधुशेखरः
ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा-
निपीतपंचसायकं नमन्निलिंपनायकम्
सुधामयुखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तु नः
जटा कटाहसंभ्रमभ्रम न्निलिंपनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम
धराधरेंद्रनंदिनी विलास बंधुबंधुर-
स्फुरद्दिगंत संतति प्रमोद मानमानसे
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि
जटा भुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्वधूमुखे
मदांध सिंधुरस्फुरत्व गुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि
सहस्रलोचनप्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोरबंधुशेखरः
ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा-
निपीतपंचसायकं नमन्निलिंपनायकम्
सुधामयुखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तु नः
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